वह दूर क्षितिज की ओर कविता
वह दूर क्षितिज की ओर वह दूर क्षितिज की ओर, गगन उतर आया है निचे। ढक कर गोरी के तन को येसे, इतरा रहा है वह जैसे।। मेघों का कलरव भी देखो, गुंजन करता -गर्जन करत...